शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009
लुटेरी पूँजीवादी व्यवस्था के खिलाफ़ लम्बी लड़ाई की तैयारी में जुट जाओ!
नई समाजवादी क्रान्ति के उद्घोषक ‘बिगुल’ से सम्बंधित 72 पन्नों पर फैली अप्रैल 1996 से अक्टूबर 1999 लगभग साढे तीन साल चली इस दिलचस्प बहस में आप पाएंगे:-
बिगुल के लक्ष्य और स्वरूप पर बहस विशेष सम्पादकीय (बिगुल प्रवेशांक, अप्रैल 1996) एक नये क्रान्तिकारी मज़दूर अख़बार की ज़रूरत………………………………………………………2
(बिगुल के स्वरूप पर आत्माराम का पत्र, (जुलाई-अगस्त 1996) कुछ ज्यादा ही लाल… कुछ ज्यादा ही अन्तरराष्ट्रीय…………………………………………………..७
(सम्पादक बिगुल का जवाब), (जुलाई-अगस्त 1996) इतने ही लाल… और इतने ही अन्तरराष्ट्रीय की आज ज़रूरत है ………………………………….८
(अप्रैल 1999) `बिगुल´ के लक्ष्य और स्वरूप पर एक बहस और हमारे विचार ……………………………….10
(अप्रैल 1999, लेनिन का लेख) मज़दूर अख़बार - किस मज़दूर के लिए? …………………………………………………………….१३
(जून-जुलाई 1999, पी.पी. आर्य का पत्र) आप लोग कमज़ोर, छिछले कैरियरवादी बुद्धिजीवी हैं और `बिगुल´ हिरावलपन्थी अख़बार है!…………………………………………………………………………………………………………….15
(जून-जुलाई 1999, सम्पादक, बिगुल का जवाब) 1999 के भारत के `क्रीडो´ मतावलम्बी ………………………………………………………………..20
(अगस्त 1999, विश्वनाथ मिश्र का जवाब) सर्वहारा वर्ग का हिरावल दस्ता बनने की बजाय उसका पिछवाड़ा निहारने की ज़िद ……..32
(अगस्त 1999, अरविन्द सिंह का जवाब) भारतीय मज़दूर आन्दोलन की पश्चगामी· यात्रा के हिरावल सेनानी ………………………34
(अक्टूबर 1999 - विशेष बहस परिशिष्ट, पी.पी. आर्य का पत्र) बिगुल के लक्ष्य और स्वरूप पर बहस को आगे बढ़ाते हुए ……………………………………..37
(अक्टूबर 1999 - विशेष बहस परिशिष्ट, सम्पादक, बिगुल का जवाब) बहस को मूल मुद्दे पर एक बार फ़िर वापस लाते हुए ……………………………………………..53
(अक्टूबर 1999 - विशेष बहस परिशिष्ट, ललित सती का पत्र) `बिगुल के लक्ष्य और स्वरूप´ पर जारी बहस : एक प्रतिक्रिया ………………………………..68
(अक्टूबर 1999 - विशेष बहस परिशिष्ट, देहाती मज़दूर यूनियन के कार्यकर्ताओं का पत्र) देर से प्रकाशित एक और प्रतिक्रिया ……………………………………………………………………69
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