गुरुवार, 4 जून 2009

अंतर्जाल, मार्क्सवाद और बौद्धिक वेश्यागमनी

मार्क्सवाद के विकास के लिए ज़रूरी है कि मार्क्सवाद को विकसित करने में मार्क्सवादियों के अब तक के अवदानों का न सिर्फ समाहार किया जाये बल्कि उन्हें आत्मसात भी किया जाये. बदली हुई परस्थितियों का न केवल सही वस्तुगत मूल्यांकन बल्कि सही प्रोग्राम होना भी आवश्यक है. मानव जाति के विकास के ज्ञान का समाहार करने के लिए इन दो सूत्रों – अभ्यास-सिद्धांत-अभ्यास और सिद्धांत-अभ्यास-सिद्धांत, के अलावा अगर कोई तीसरा सूत्र है तो,ज़रूर अवगत कराएं. हम पहले सूत्र प्रति प्रतिबद्ध हैं जबकि दूसरे को छोड़ देते हैं क्योंकि हमारी नज़र में यह मार्क्सवाद न होकर शुद्ध अध्यात्मकवादी फलसफा है जिसका रणक्षेत्र यह संसार न होकर मानव की शुद्ध (?) सोच के आस-पास घूमता है.

दूसरी बात, मार्क्सवाद की आलोचना करते समय क्या कभी किसी ने मार्क्सवादी रचनाओं को उदृत किया है? या फिर शोर्टकट रास्ते द्वारा मार्क्सवाद का निषेध प्रयाप्त है? आज अगर कोई वैज्ञानिक या इंजिनिअर किसी ऑटो में कोई सुधार करना चाहे तो क्या वह लकडी के पहिए से शुरू करेगा या फिर अब तक के भौतिकी के ज्ञान का समाहार करते हुए आगे बढेगा?

हम कहना यह चाहते हैं कि मार्क्सवाद पर न केवल बहस होनी चाहिए, बल्कि पुरजोर बहस होनी चाहिए जिसके लिए अब तक की मार्क्सवादी रचनाओं का अध्ययन-मनन आवश्यक होगा लेकिन ये बहसें अगर अकेडमिक आधार पर होती हैं और अभ्यास से कटी होती हैं तो इसका अंजाम जो होगा वह कुछ भी हो लेकिन मार्क्सवाद नहीं हो सकता. मार्क्सवाद को केवल दिमाग से नहीं उपजाया जा सकता.

तीसरी बात, इस तरह के प्रश्न कि साम्यवाद रूस में क्यों फेल हुआ और यह चीन में क्यों सफल है, क्या इस तरह के प्रश्न उन लोगों के मुहं से अच्छे लगते हैं जो अपने आप को श्री राम विलास शर्मा के शिष्य बताते हैं. विज्ञान की किसी भी शाखा की बहस में भाग लेने से पहले क्या यह ज़रूरी नहीं कि उसकी शब्दाबली के अर्थों का प्रारंभिक ज्ञान आवश्यक हो?

और सबसे बड़ी बात कि जब प्रश्न पूछा जाये तो उसके सन्दर्भ का विस्तृत खुलासा हो क्योंकि अगर प्रश्न सही होगा तभी उसका सही जवाब खोजा जा सकता है जबकि ज्यादातर लोग जुमलों को प्रयोग करते हैं, और जुमले भी ऐसे कि जवाब देने वाले को कुछ नहीं सूझता कि जवाब का सूत्रीकरण क्या हो? और अंतर्जाल पर हिंदी की ऐसी कितनी साइटें हैं जिन्होंने इस विषय को जोरशोर से उठाया हो. अलबता फाकुयामा की तरह ‘ द एंड ऑफ हिस्ट्री’ जैसे जुमले कसने वाले अनगिनत हैं.

मार्क्सवाद के प्रति निष्ठावान लोगों की कमी नहीं है और उन लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो छेड़खानी करके मज़े लेने में विश्वास करते हैं. विचारों के लिए विचारों का आदान-प्रदान और वह भी गैर-संजीदा तरीके से, यह सब हद दर्जे की बौद्धिक वेश्यागमनी नहीं तो और क्या है?

ज्ञानदत्त पाण्डेय जी इतने भोले नहीं हो सकते कि वे यह न जानते हों कि किसी भी समाज की अधिरचना को जानने समझने के लिए उसके आधार यानि कि उत्पादन की शक्तियां, उत्पादन के साधनों पर किस वर्ग का अधिकार और इससे उपजे मनुष्यों के आपसी आर्थिक सम्बन्ध कैसे हैं, को जानना ज़रूरी है.

अब अगर आधार समझ आ जाता है तो अधिरचना जिसकी प्रमुख संस्थाएं कार्यपालिका, विधानपालिका, न्यायपालिका, धर्म, दर्शन आदि अगर “इन्स्टीट्यूशनज़” नहीं तो और क्या हैं ? और जहाँ तक इन “इन्स्टीट्यूशनज़” जो कि ऐतिहासिक रूप से पूंजीवाद के पक्ष में खड़े और विकसित हुए हैं का मजदूर वर्ग के पक्ष में खडा होने का सम्बन्ध है,वे इस बात का कोई खुलासा नहीं करते, और कहते हैं कि; [देखें जनतन्तर कथा की अन्तरकथा और फैज-अहमद-फैज का गीत, "हम मैहनतकश जग वालों से......"आलेख की टिप्पणियां]

“सिद्धान्त जब इन्स्टीट्यूशनलाइज हो जाते हैं, तो जड़ हो जाते हैं। उनकी ग्रोथ रुक जाती है।
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण और गति के सिद्धान्त अन्त नहीं थे – भौतिकी अब भी विकसित हो रहा शास्त्र है।
मार्क्स के साथ यह है क्या?”.

लेकिन वे इस बात पर चुप्पी साध लेते हैं कि उपरोक्त वर्णित अधिरचना की संस्थाओं का तोड़ क्या है? क्या ऐसी बहुत सी मार्क्सवादी “इन्स्टीट्यूशनज़” का होना और उन “इन्स्टीट्यूशनज़” के संचालन के लिए एक केन्द्रीय जनतांत्रिक ‘मदर इन्स्टीट्यूशन’ का होना गैर-ज़रूरी है. क्या इन ‘इन्स्टीट्यूशनज़’ और ‘मदर इन्स्टीट्यूशन’ के बिना बुर्जुआ “इन्स्टीट्यूशनज़” का निषेध संभव है?

आपने लिखा “मार्क्सवाद के साथ यह है क्या?” अगर मार्क्सवाद पर आप वाकई फिक्रमंद और संजीदा हैं तो इसकी सेवा में थोड़े से उस मार्क्सवादी तरीके से बहस करें जिस पर लगभग आम सहमति बन चुकी है. हमने आपकी टिपण्णी के प्रत्युत्तर में जवाब देने की कोशिश की है लेकिन यकीन करें , अभी तक हमें आप के प्रश्न से यह नहीं पता चला कि आप असल में पूछना क्या चाहते हैं?

आशा है कि आप मार्क्सवादी तरीके से बहस को आगे बढायेंगे.

11 टिप्‍पणियां:

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण ने कहा…

आपने पूछा है कि मार्क्सवाद को समझने का और कोई तरीका हो तो सूचित करें।

एक तरीका और है, वह है डा.रामविलास शर्मा की पुस्तकों को पढ़ना। डा.शर्मा मार्क्स जितने ही गहन-गंभीर विचारक हैं, और हमारा सौभाग्य है कि उन्होंने अपनी सारी रचना हिंदी में की है। उन्होंने सौ से अधिक किताबें लिखी हैं और प्रत्येक में मार्क्सवाद के किसी न किसी पहलू को उजागर किया है। इतना ही नहीं मार्क्सवाद को मार्क्स, ऐंजेल्स, लेनिन आदि के मूल ग्रंथों से ढेर सारे उद्धरण देकर भारतीय संदर्भ में समझाया है।

उन्होंने मार्क्सवाद की कसौटी पर इतिहास, साहित्य, साहित्यकार, राजनीति, राजनीतिज्ञ आदि को कसा है। उनकी रचनाएं आंख खोलनेवाली हैं। हर भारतीय को, और हर हिंदी भाषी को तो अवश्य ही, इन रचनाओं को पढ़नी चाहिए। पढ़नी ही नहीं चाहिए, उनमें कही गई बातों को अमल में उतारना चाहिए।

डा. रामविलास शर्मा ने मार्क्स के प्रसंद्ध ग्रंथ पूंजी का भी हिंदी में अनुवाद किया है, हालांकि पूंजी का जो अधिकृत संस्करण मास्को से प्रकाशित हुआ, उसमें उनके अनुवाद का बहुत कम हिस्सा ही उपयोग किया गया है। यदि पूरा किया गया होता, पूंजी ग्रंथ निश्चय ही अधिक पढ़नीय होता।

मार्क्सवाद संबंधी डा. शर्मा की कुछ प्रमुख किताबें ये हैं -

1. भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद(दो खंड)
2. मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य
3. मार्क्स और पिछड़े हुए समाज
4. मार्क्स ट्रोत्स्की और एशियाई समाज
5. गांधी, अंबेडकर और लोहिया
6. पाश्चात्य दर्शन और सामाजिक अंतर्विरोध : थलेस से मार्क्स तक

ये सारी किताबें राजकमल प्रकाशन, दिल्ली और वाणी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई हैं

Unknown ने कहा…

एक और।
स्वागत है....

दिल दुखता है... ने कहा…

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

lal salam kahana padega. narayan narayan

Ashok Kumar pandey ने कहा…

आप अगर सच में यहां कोई बहस चलाना चाहते हैं तो स्वागत


हालांकि आपकी भंगिमा तो आतंकित करने वाली है।

शहीद भगत सिंह विचार मंच, संतनगर ने कहा…

अशोक कुमार पाण्डेय ,

आपके इस 'अन्तंकित करने वाली भंगिमा' पर निश्चित रूप से गौर किया जायेगा. फ़िलहाल, इस कमी की ओर आगाह करने के लिए शुक्रिया. आपने हमारी खामी को सही पकडा. बहरहाल, हम आशा करते हैं कि आप इस बहस से जुड़े रहेंगे ओर अपने अमूल्य सुझाव और आपत्तियां दर्ज करवाते रहेंगे.

Unknown ने कहा…

prayaas aashanvit karne wala hai
badhai!

Kavyadhara ने कहा…

जब भी कोई बात डंके पे कही जाती है
न जाने क्यों ज़माने को अख़र जाती है ।

झूठ कहते हैं तो मुज़रिम करार देते हैं
सच कहते हैं तो बगा़वत कि बू आती है ।

फर्क कुछ भी नहीं अमीरी और ग़रीबी में
अमीरी रोती है ग़रीबी मुस्कुराती है ।

अम्मा ! मुझे चाँद नही बस एक रोटी चाहिऐ
बिटिया ग़रीब की रह – रहकर बुदबुदाती है

‘दीपक’ सो गई फुटपाथ पर थककर मेहनत
इधर नींद कि खा़तिर हवेली छ्टपटाती है ।
@Kavi Deepak Sharma
http://www.kavideepaksharma.co.in

http://www.kavideepakharma.com

http://shayardeepaksharma.blogspot.com

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है....

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है....

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।